जिस सन्दर्भ में इस चौपाई का प्रयोग
हुआ है वह है समुद्र द्वारा रास्ता देने का अनुरोध
न सुनना .क्रोधित होकर राम चन्द्र जी अपना
धनुष -बाण उठा लेते हैं तब समुद्र अपने पक्ष
में इस चौपाई का प्रयोग करता है . समुद्र में
रास्ता बनाकरजाना विकास का प्रतीक है .समुद्र
ज्ञान का भी प्रतीक है .लंका पर आक्रमण की
तैयारी विकास का मार्ग प्रशस्त करने की तैयारी
है,वह भी ज्ञान के समुद्र को जीतकर .
समुद्र ही राम चन्द्र जी को बोध कराता
है की 'ढोल ,गंवार,सूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के
अधिकारी हैं .' अर्थात वह 'सकल 'शब्द का प्रयोग करता
है .अभिप्राय है की किसी एक के द्वारा नहीं .पाँचों के
उद्धार या विकास द्वारा ही ज्ञान के समुद्र में रास्ता बनाया
जा सकता है .समुद्र पर क्रोधित होने से अच्छा है की इनका
विकास किया जाए ,वरना इस प्रसंग में समुद्र स्वयं क्षमा
मांग सकता था .इन पाँचों के बारे में कहने का क्या
आशय था ? यहाँ तुलसीदास जी की सामाजिक द्रष्टि
उजागर होती है की किसी दुर्बल व्यक्ति पर ध्यान देकर
उन्हें दूर करना चाहिए .विकास के प्रमुख पांच
घटक हैं .इनका सकल विकास होना चाहिए ,किसी
एक का नहीं . चौपाई में एक और शब्द का प्रयोग हुआ
है 'अधिकारी ' . यह प्रयोग मामूली नहीं है जैसा
विद्वतजन 'योग्यता' के अर्थ में प्रयोग करते हैं .
'ताड़ना' के 'अधिकारी '-दंड पाने के योग्य हैं . किन्तु
संदर्भित स्थान और प्रयक्ति में ऐसा अर्थ कदापि नहीं
हो सकता क्यों की दंड आने का कोई अधिकार नहीं
होता है .अधिकारी से तात्पर्य अधिकार रखने वाले से
है .दंड देने का अधिकार तो हो सकता ,मारने का
अधिकार हो सकता है ,पिटने का नहीं .शोषित होने
का अधिकार कभी होता है क्या ? सही अर्थों में सकल
तत्व ढोल (मीडिया ) ,गंवार (अशिक्षित ),सूद्र ( निचला
दलित वर्ग ) ,पशु ( दुर्बल पालतू जानवर ) और नारी
( पीड़ित एवं शोषित महिला वर्ग ) अपने -अपने उद्धार
का अधिकार रखते हैं .इनका अधिकार इनको मिलना
चाहिए . कुछ आलोचक और विद्वानों ने 'ताड़ना '
का बुन्देली अर्थ समझे बिना ही ,उसे 'प्रताड़ना '
के करीब मानकर अर्थ का अनर्थ कर दिया ,जबकि
हिंदी शब्द कोष में कहीं भी 'ताड़ना ' का अर्थ
'प्रताड़ना ' नहीं दिया गया है .उर्दू में कहा गया
है की ' नुक्ते के हेर फेर में खुदा जुदा हो गया ' यहाँ
यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है .तुलसी
दास जी का ह्रदय कितना कोमल था ,यह इस पंक्ति
से जाहिर है .
' मर्म वचन जब सीता बोला ,
पीपल पात सरिस मन डोला '
समूर्ण 'राम चरित मानस ' में कहीं भी ऐसा
प्रसंग नहीं जहां मानवता या मानव मूल्यों की
स्थापना में कोताही बरती गई हो .यही कारण है
की समुद्र की बातें सुनकर श्री राम चन्द्र जी मुस्कराने
लगते हैं :
' सुनत विनीत वचन अति कह कृपालु मुस्काई '.
अस्तु ,महा कवि तुलसी दास जी ने सामाजिक
मर्दायों का पालन करते हुए ,कुप्रथाओं को तोड़ने
का प्रयास किया तथा आदर्श राज धर्म ,भक्ति ,त्याग ,
सदाचार की शिक्षा देने वाला ग्रन्थ रचा है ,विद्वेष -
मूलक नहीं .